अभिव्यक्ति,साहब बहादुरों की …!
मध्यप्रदेश की ब्यूरोक्रेसी भी अजीब है। और उसमें भी ‘आज्ञाकारी’ आईएएस अफसरों के कहने ही क्या! कभी आईएएस रमेश थेटे भोपाल में सड़क पर उतरने की धमकी देकर अपनी अफसरी के अच्छे दिन ले आते हैं। कभी सस्पेंड आईएएस शशि कर्नावत जलसमाधि लेने की चेतावनी देकर ‘सरकार’ की नींद उड़ा देती हैं। और अब, प्रमोटी आईएएस की जमात सोशल मीडिया पर लामबंद होकर परेशानी बढ़ा रही है।
मामला खरबूजे को देख कर खरबूजे के रंग बदलने जैसा है। बड़वानी कलेक्टर अजय सिंह गंगवार ने फेसबुक पर नेहरू की पुण्यतिथि के ठीक पहले देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लेकर अपने विचार क्या व्यक्त किए। हंगामा खड़ा हो गया। साहब बहादुर ने नेहरू युग की तारीफ में बाबा रामदेव से लेकर विवादित संत आशाराम और गौशाला तक सवाल ही नहीं खड़े किए मोदी युग को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। बीजेपी की केंद्र सरकार के मुखिया पर निशाना साधने की ऐसी धृष्टता पर बीजेपी शासित प्रदेश सरकार से सजा तो मिलनी ही थी, सो गंगवार को जिलाधीश से उठा कर मंत्रालय के एक छोटे से कमरे में उपसचिव के तौर पर बिठाने के आदेश जारी हो गए। गंगवार के साथ जो हुआ वह प्रमोटी आईएएस राजेश बहुगुणा को रास नही आया तो उन्होंने गंगवार के साहस को सलाम करने के लिए सोशल मीडिया का ही सहारा लेकर अफसरशाही में मचे उबाल को हवा दे दी। अंदरखाने की खबर है कि कई प्रमोटी अफसर गंगवाल और बहुगुणा के साहस को सलामी दे रहे हैं। हो सकता है कि किसी और अफसर का जोश उबाल मार जाए और वो भी सोशल मीडिया पर कथित तौर पर ‘अनसोशल’ होने से खुद को न रोक पाए।
सरकार की चिंता का कारण भी अफसरों का इस तरह सोशल होना ही है। ये उस सरकार में हो रहा है, जिसमें अधिकारियों को सिखाया जा रहा है कि वे सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग जनता की समस्याओं के निदान के लिए करें। लोगों से जुड़ें। सवाल यह है कि ग्रामोदय से भारत उदय अभियान की व्यस्तता के बीच अफसर सोशल मामलों पर कमेंट्स के लिए समय कैसे निकाल पा रहे हैं। वो भी तब जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ चेतावनी दे रखी है कि इस अभियान में लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी और कलेक्टरों की सीआर में अभियान की सफलता और असफलता दर्ज की जाएगी। लेकिन जिलों में तैनात अफसरों के निजी विचार लगातार आ रहे हैं और मंत्रालय की चौथी एवं पांचवी मंजिल पर बैठे अफसरों के हाथ-पांव फुला रहे हैं। इसकी ताजा शुरूआत की है नरसिंहपुर कलेक्टर सिबी चक्रवर्ती ने। अखिल भारतीय सेवा के इस नए रंगरूट का दिल तमिलनाडु में जयललिता की दोबारा सरकार बनने पर इतना प्रसन्न हुआ कि उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल से ‘अम्मा’ को न केवल बधाई दे डाली बल्कि उनकी जीत को ऐतिहासिक करार दिया। हंगामा मचा तो साहब को नोटिस थमा कर जवाब मांग लिया गया। लेकिन चक्रवर्ती की कलेक्टरी वैसे नहीं छीनी गई, जैसे गंगवाल की छीनी गई है। गंगवाल को पहले हटाया और अब नोटिस देने की तैयारी हो रही है। डायरेक्ट और प्रमोटी आईएएस का यही फर्क हलचल मचा रहा है। यही वो कारण है जिससे उनके साहस को सलाम किया जा रहा है।
कहने को अखिल भारतीय सेवा के अफसर सिविल सर्विस आचरण संहिता के दायरे में बंधे होते हैं। इन मामलों में आचरण संहिता का उल्लंघन होना ‘बड़े बाबू’ मान रहे हैं। लेकिन, कई उदाहरण ऐसे भी हैं जिनमें अफसरों के बेपटरी होने पर उन्हें सजा के बजाए मेवा मिला है। आईएएस रमेश थेटे इसका सबसे उम्दा उदाहरण हैं। साहब रिश्वत के मामले में नौकरी से हाथ धो बैठे थे। सुप्रीम कोर्ट से जीत कर आए तो बहाली नहीं होने पर राष्ट्रपति भवन के सामने आत्मदाह की धमकी दे डाली। नौकरी वापस मिल गई। फिर लोकायुक्त के फेर में फंसे तो मुख्यमंत्री सहित आला अफसरों पर सार्वजनिक टीका-टिप्पणी करने के साथ जातिगत फोरम का भरपूर उपयोग किया। झुकना सरकार को पड़ा और थेटे को लूप लाइन से निकाल कर मुख्य धारा में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में सचिव पद थमा कर शांत करा लिया गया। थेटे के साथ सुर मिला रहीं सस्पेंड आईएएस शशि कर्नावत का भी निर्वाह भत्ता तब बढ़ा जब उन्होंने इंदिरासागर डैम के हनुवंतिया टापू पर होने वाली कैबिनेट बैठक के दौरान जलसमाधि लेने की घोषणा कर सरकार को हिला दिया।
ब्यूरोक्रेसी यानी सरकार चलाने वाली नौकरशाही के अंदरखाने में सबकुछ ठीक ठाक नहीं है। झगड़ा प्रमोटी या नए अफसरों के बीच तक ही सीमित हो ऐसा भी नहीं है। प्रदेश का ये वो दौर है, जिसमें मुख्य सचिव के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा कर रहे अंटोनी जे.सी. डिसा के एक्सटेंशन की बात चलती है तो उनके खिलाफ शिकवा शिकायत का दौर शुरू हो जाता है। चीफ सेक्रटरी के पद पर दावेदार के तौर पर एसीएस राधेश्याम जुलानिया के चर्चे होते हैं तो उनके खिलाफ तीन दशक पुराने मामले में कोर्ट का गैर जमानती वारंट आ धमकता है। इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग अफसर अपने मन के भाव उजागर करने के लिए करें तो परहेज कैसा?