बड़ी अजीब बेरोजगारी है….

आज एक महिला आई और बोली- आपके संस्थान में कोई बैकऑफिस वर्क हो तो काम करना चाहती हूं। कुछ दिन पहले एक युवक आया था, बोला- मेरे पास स्कूटर है, कोई भी काम हो तो बताएं। कम्प्यूटर में दक्ष महिला तो समझ आई, लेकिन स्कूटर का नौकरी से क्या ताल्लुक? बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, ऑटोरिक्शा, ट्रैक्टर आदि के सहारे काम की तलाश तो सुनी थी, लेकिन स्कूटर से? सवाल खड़ा हुआ तो पूछ भी लिया। युवक ने बताया वो पहले कपड़े की दुकान पर काम करता था। मालिक ने मंदी की आड़ में छंटनी कर दी। काम के दौरान ही बैंक से कर्ज लेकर स्कूटर खरीदा था। अब वही साधन है जिसके जरिए नौकरी की जुगाड़ है ताकि किश्त पटती रहे और घर चलता रहे।

ये स्थिति क्यों है? आखिर क्यों है ऐसी बेरोजगारी?

“खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए, हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में।” अदम गोंडवी की कविता की इन लाइनों सी है आज ये युवाओं की आस। 

ट्विटर हो या फेसबुक… पीएससी समेत संविदा शिक्षक से लेकर तमाम भर्ती परीक्षाओं का इंतजार कर रहे बेरोजगारों की पोस्ट देखिए तो महसूस होता है कि युवा कितने अधीर हैं। कोई दो साल से तैयारी कर रहा है तो किसी को पांच साल हो गए इंतजार करते-करते। सरकारें बदल गईं, लेकिन भर्ती तो दूर इसकी परीक्षा की तारीख घोषित नहीं हो रही। ये स्थिति तब है जब किसी शॉपिंग मॉल या बाजार की तर्ज पर हर छोटे-बड़े शहर में शिक्षण संस्थान चल रहे हैं। आईआईटी से इंजीनियर बनाने की फैक्ट्री राजस्थान के कोटा में है तो आईटीआई एवं मैनेजमेंट से लेकर डॉक्टरी और हर तरह की विशेषज्ञता पढ़ाने वाले संस्थानों की देश में कोई कमी नहीं है। कम्प्यूर के सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर से लेकर एथिकल हैकिंग तक सिखाने वाले संस्थान तंग गलियों तक हैं। प्रायमरी से लेकर हायर सेकेण्डरी तक के कोचिंग इंस्टीट्यूटों की भरमार है। किसी राज्य में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से भी ज्यादा स्किल डेवलपमेंट के साधन और सुविधाएं उपलब्ध हैं।

स्किल डेवलपमेंट! इसी शब्द पर सबसे ज्यादा जोर दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार हो या केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार। सबकी जुबान पर यह जुमला है। बेरोजगारों की तादाद हर साल बढ़ती जा रही है और न तो उन्हें स्किल मिल रहा और न ही डेवलपमेंट हो रहा है। मध्यप्रदेश में 11 माह पहले सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ने स्किल डेवलपमेंट के साथ ही मुख्यमंत्री युवा स्वाभिमान योजना का ख्वाब दिखा कर ऑनलाइन पंजीयन कराए। जिन ट्रेड में रोजगार को देने की बात की गई उसमें ढोर चराने से लेकर बैंड बाजा बजाने तक की ट्रेनिंग शामिल थी। रोजगार नहीं मिलने पर इन प्रशिक्षित युवाओं को बेरोजगारी भत्ते की तर्ज पर हर माह राशि मिलने का प्रावधान था। पता नहीं यह योजना कहां गुम हो गई? पिछली भाजपा सरकार में भी युवाओं को नौकरी का सुनहरा सपना दिखा कर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से लेकर न जाने क्या-क्या जतन किए गए, सब मृगमरीचिका ही साबित हुए। पिछली सरकार की आरक्षण संबंधी अदालती चुनौती के फेर में भर्ती परीक्षाएं अधर में गईं सो अलग। इनकी तो ठीक है, हर साल दो करोड़ नए रोजगार देने का प्रधानमंत्री का पिछली सरकार का वादा भी पकौड़ा और चाय व्यवसाय की भेंट चढ़ गया। मेक इन इंडिया प्रोडक्ट की भीड़ में मेड इन इंडिया युवा बेरोजगार ही रह गए हैं। नए युवाओं को रोजगार नहीं और जो रोजगार से लगे थे वे छंटनी के शिकार हो रहे हैं। मल्टीनेशनल्स से लेकर परचून और गारमेंट शॉप तक यही स्थिति है। कोई तो बताए इस स्थिति में युवा क्या करें? कहां जाएं? किससे मांगे रोजगार?

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