सरकार.., अब वक्त है रगों से लिपटे विषधरों को धरने का

सोचा था, ‘वक्त है बदलाव का’ के साथ मध्यप्रदेश में बदला हुआ वक्त दिखेगा। प्रदेश में भ्रष्टाचारमुक्त ईमानदार प्रशासन नजर आएगा। राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं का वक्त जरूर बदला है, लेकिन अफसरशाही का समय नहीं बदला है। याद कीजिए शिवराज सिंह चौहान सरकार के दौरान लोकायुक्त जैसी जांच एजेसियां मुंह अंधेरे किसी अफसर या पटवारी तक के घर छापा मार कर करोड़ों रुपयों की अनुपातहीन संपत्ति उजागर करती थीं। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस वाली सरकार आने के बाद भी वक्त ठहरा हुआ सा ही है। 

लोकायुक्त की विशेष स्थापना पुलिस ने आज इंदौर में पदस्थ आबकारी विभाग के एक सहायक आयुक्त के ठिकानों पर छापामारी की तो वक्त का पहिया पुरानी जगह पर ही स्थिर मिला। शराब से सरकारी खजाना भरने वाले इस महकमे के आलोक कुमार खरे के भोपाल, इंदौर, रायसेन और छतरपुर के सात ठिकानों पर एक साथ की गई इस कार्रवाई में 100 

करोड़ से अधिक की संपत्ति का खुलासा हुआ है। आलीशान फार्महाउस, लेविश बंगले और दर्जन भर लग्जरी गाड़ियों के साथ 21 लाख रुपये नगद की शुरूआती बरामदगी ने हलचल मचा दी है। महज लाख-सवा लाख रुपये महीना वेतन पाने वाला कोई अफसर दो दशक की अपनी नौकरी में इतना माल-असबाब बटोर कर मजे से मनचाही पोस्टिंग लेता रहा और निजाम आंखें बंद किए बैठा रहा! अभी तो लॉकर खुलना और दस्तावेजों की पड़ताल होना शेष है, पता नहीं वे काली कमाई के इस कुबेर का कितना खजाना उगलेंगे? मजे की बात यह है कि अपनी अवैध कमाई को वैध बनाने का जो तरीका खरे ने ईजाद किया था, वह कई नेताओं का भी पसंदीदा है। खरे की पत्नी रायसेन में फलों की खेती करतीं थीं और अपने इनकमटैक्स रिटर्न में उससे मोटी आय का रिटर्न फाइल करती थीं।

आबकारी महकमे में आलोक कुमार खरे अकेले कमाऊ पूत नहीं हैं। गुजरात से लेकर अन्य राज्यों में अवैध मदिरा की तस्करी का स्वर्ग कहे जाने वाले इंदौर संभाग में पदस्थ कई अफसर खरे से भी ज्यादा मालदार मिल सकते हैं। बस 

उनकी तरफ नजर घुमाने की देर है। मालवा की इसी धरती पर आबकारी विभाग के कई बड़े घोटाले उजागर हो चुके हैं। दो साल पहले उजागर हुए 42 करोड़ के घोटाले में जिन अफसरों की मिलीभगत से फर्जी बैंक चालान के जरिए राज्य सरकार को चूना लगाया गया था, वे तमाम अफसर जांच के बीच ही दोबारा इंदौर में पोस्टिंग पा गए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब इस घोटाले की क्या परिणति होगी। भोपाल से लेकर ग्वालियर और अन्य जिलों तक आबकारी महकमे में कई घोटाले जब-तब सामने आए और जांच के नाम पर दबा दिए गए। जिन अफसरों पर इनके दाग लगे वे ‘ दाग अच्छे हैं ’ चरितार्थ करते हुए ‘सफेदी की चमकार’ को मात देते हुए फिर फील्ड में अपनी और अपने आकाओं की जेबें भरने में जुटे हैं। कितने नाम गिनाए जाएं। इंदौर घोटाले की आंच में झुलसे अफसर पिछली भाजपा सरकार की आंखों के तारे थे तो नई सरकार के लिए भी वे सुरमा साबित हो रहे हैं। सहायक आयुक्त खरे के आलोक में देखा जाए तो सिर्फ आबकारी ही नहीं कई विभागों को सफाई की जरूरत है, लेकिन सत्ता पर बैठे लोग सफाई के सिर्फ नारे बुलंद कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहे हैं, असली सफाई से उन्हें परहेज है।

पुनश्च प्रदेश के घोटालेबाजों और काले धन के कुबेरों की बात करें तो अब बयानबाजी होने लगी है कि खरे ने यह अकूत संपत्ति पिछली सरकार के दौरान अर्जित की थी। नई सरकार में तो उन पर लोकायुक्त का शिकंजा कसा है। सरकार को अभी सिर्फ नौ माह ही हुए हैं आदि, इत्यादि। पन्ने पलटें तो ऐसा ही बयान पिछली सरकार के दौरान उस वक्त सत्ताधारीदल के नेताओं का होता था कि कमाई तो उनसे पहले की सरकार की है, उन्होंने घोटालेबाजों पर छापे डलवाए हैं। नौ

माह में बयानवीर भले बदल गए हों, लेकिन बयानों का स्वर वही है। सरकार को वाकई प्रशासन और व्यवस्था में स्वच्छता अभियान चलाना है तो तमाम दागी अफसरों को किनारे धरें और उनकी संपत्ति की जांच कराएं, फिर चाहे वह कोई भी हो। अकेले इस अभियान से इतनी काली कमाई राज्य सरकार के खजाने में आ सकती है कि उसे मुख्यमंत्री युवा स्वाभिमान योजना चलाने के लिए बाजार से कर्ज नहीं लेना पड़ेगा। संदूकों और जमीन में गड़ा खजाना निकला तो प्रदेश में निवेश बढ़ाने मैग्नीफिसेंट एमपी जैसे आयोजन कर उद्योगपतियों की चिरौरी करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। वक्त इन मुद्दों पर भी विचार करने का है….इसलिए थोड़ा वक्त शासन-प्रशासन की रगों से लिपटे इन विषधरों को पकड़ने के लिए भी निकालिए सरकार!

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