सरकार गई तो फिर ये भावांतर और बैसाखी राग क्यों ? ‘मध्यप्रदेश में कुछ अजीब हुआ। वोट शेयर भाजपा का ज्यादा रहा, हालांकि कांग्रेस की कुछ सीटें ज्यादा आईं और फिर एक मजबूर और लंगड़ी सरकार बना ली गई। सरकार हम भी बना सकते थे, लेकिन
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आवरण बदलने का यह खेल अनूठा है। सालों लग जाते हैं लोगों को अपनी एक इमेज बनाने में और बदलने में। महज दो घंटे में कोई अचानक उद्योगपति से किसान बन जाए…! यह कमाल किया है कमलनाथ ने। चालीस साल के अपने राजनीतिक
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माहौल ठीक वैसा ही है जैसा 15 साल पहले की मकर संक्रांति पर था। सरकार बिल्कुल वैसी ही चल रही है जैसी जनवरी 2004 में थी। फर्क बस इतना है कि तब तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती बेहद उत्साही थीं, अबकी बार के
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