रिटायरमेंट शाम का वक्त था। झुकी कमर और ढीले-ढाले पुराने घिसे कपड़ों में तकरीबन सत्तर साल के एक बुजुर्ग धीरे-धीरे सड़क का किनारा पकड़े चले आ रहे थे। सड़क न सुनसान थी और न ही ज्यादा चहल-पहल। आमतौर पर ऐसा ही
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बड़े बड़े लोगों को आत्मकथा लिखने का शौक होता है। लोग खूब चाव से अपनी आत्मकथा लिखते है, उसका विमोचन कराते हैं और प्रचार भी खूब पाते हैं। मुझे इसका ज्ञान अभी चंद रोज पहले ही हुआ, जब दो पढ़ाकू किस्म के
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